भारत में परमाणु ऊर्जा


परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्वक ढंग से उपयोग में लाने हेतु नीतियों को बनाने के लिए 1948 ई. में परमाणु ऊर्जा कमीशन की स्थापना की गई। इन नीतियों को निष्पादित करने के लिए 1954 ई. में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना की गई।
परमाणु ऊर्जा विभाग के परिवार में पाँच अनुसंधान केंद्र हैं-
(i) भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC)- मुंबई, महाराष्ट्र।
(ii) इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR)- कलपक्कम, तमिलनाडु।
(iii) उन्नत तकनीकी केंद्र (CAT) - इंदौर।
(iv) वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन केंद्र (VECC) - कोलकाता।
(v) परमाणु पदार्थ अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (AMD)- हैदराबाद।

परमाणु ऊर्जा विभाग सात राष्ट्रीय स्वायत्त संस्थानों को भी आर्थिक सहायता देता है, वे हैं-
(i) टाटा फंडामेंटल अनुसंधान संस्थान (TIFR)- मुम्बई।
(ii) टाटा स्मारक केंद्र (TMC) - मुंबई।
(iii) साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान (SINP)- कोलकाता।
(iv) भौतिकी सँस्थान (IOP)- भुवनेश्वर।
(v) हरिश्चंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI)- इलाहाबाद।
(vi) गणितीय विज्ञान संस्थान (IMSs) - चेन्नई और
(vii) प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान (IPR)- अहमदाबाद।

नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम (Nuclear Power Programme)-1940 ई. के दौरान देश के यूरेनियम और बड़ी मात्रा में उपलब्ध थोरियम संसाधनों के प्रयोग के लिए तीन चरण वाले परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का गठन किया गया। कार्यक्रम के चल रहे पहले चरण में बिजली के उत्पादन के लिए प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन वाले भारी दबाव युक्त पानी रिएक्टर (Pressurised Heavy water reactors) का इस्तेमाल किया जा रहा है। उपयोग में लाए गए ईंधन को जब दुबारा संसाधित किया जाता है तो उससे प्लूटोनियम उत्पन्न होता है जिसका प्रयोग दूसरे चरण में द्रुत ब्रीडर रिएक्टर में विच्छेदित यूरेनियम के साथ ईंधन के रूप में किया जाता है। दूसरे चरण में उपयोग में लाए ईंधन को दुबारा संसाधित करने पर अधिक प्लूटोनियम और यूरोनियम-233 उत्पादित होता है, जब थोरियम का उपयोग आवरण के रूप में किया जाता है। तीसरे चरण के रिएक्टर यूरेनियम-233 का इस्तेमाल करेंगे।