भारत में विभिन्न निकाय
<> अंतर्राज्यिक परिषद्
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भारत के राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 1990 में संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत अंतर्राज्यिक परिषद् की स्थापना
की गई.
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परिषद् का कार्य राज्यों से सम्बंधित नीति और उनमे समन्वयकारी सिफारिश करना है.
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यह परिषद् राज्यों के बीच परस्पर उत्पन्न विवादों की जांच और उसपर अपनी सलाह देता है.
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परिषद् में प्रधानमंत्री सहित 6 मनोनीत कैबिनेट मंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री/प्रशासक शामिल
होते है.
<> राष्ट्रीय एकता परिषद्
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केंद्र सरकार ने वर्ष 1986 में इस संविधानेत्तर निकाय की स्थापना की.
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इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों की कल्याण के लिए कार्य करना है.
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यह निकाय सांप्रदायिक सद्भाव बनाने सहित अयोध्या विवाद जैसे मुद्दों पर मध्यस्थ की भूमिका निभाता है.
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इसमें केन्द्रीय मंत्री सहित राज्यों के मुख्यमंत्री, प्रादेशिक राजनैतिक दल के प्रतिनिधि, सार्वजानिक संगठन, पत्रकार, महिला, और श्रमिक संघों के प्रतिनिधि सदस्य होते है.
<> क्षेत्रीय परिषद्
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संविधान में क्षेत्रीय परिषदों का प्रावधान नहीं था लेकिन संसद द्वारा एक अधिनियम से इसकी स्थापना 1956 में की गई .
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भारत में 5 क्षेत्रीय परिषदें राज्यों के सामान्य हितों के विषय में सलाह देती है.
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इसका अध्यक्ष भारत का गृहमंत्री या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कोई व्यक्ति हो सकता है. राज्यों के
मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल द्वारा मनोनीत दो मंत्री इसके सदस्य होते है.
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राज्यों के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु सलाह देना और दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य सीमा विवाद की स्थिति
में उचित परामर्श देना, जनता में भावनात्मक एकता उत्पन्न करना, क्षेत्रवाद-भाषावाद को रोकना आदि इसके
मुख्य कार्य
है.
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भारत में कुल 5 क्षेत्रीय परिषदें कार्यरत है जो निम्न है.
1.
उत्तर क्षेत्रीय परिषद् :- इसका मुख्यालय दिल्ली में है और इसमें शामिल राज्य जम्मू & कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, एवं राजस्थान है.
2.
मध्य क्षेत्रीय परिषद् :- इसका मुख्यालय इलाहाबाद में और उत्तर प्रदेश- मध्य प्रदेश राज्य आते है.
3.
पूर्व क्षेत्रीय परिषद् :- इसका मुख्यालय कोलकाता में है और इसमें बिहार, प.बंगाल, उड़ीसा सहित सभी पूर्वोत्तर राज्य शामिल
है.
4.
पश्चिम क्षेत्रीय परिषद् :- इसका मुख्यालय मुंबई में है और इसमें महाराष्ट्र, गोव, एवं दमन-दीव राज्य शामिल है.
5.
दक्षिण क्षेत्रीय परिषद् :- इसका मुख्यालय चेन्नई में है और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पुदुचेरी, आदि राज्य सदस्य है.
<> योजना आयोग
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यह एक संविधानेत्तर निकाय है जिसकी स्थापना 1950 में संसद द्वारा पारित अधिनियम से की गई.
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इसका उद्देश्य आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए एक समेकित पंचवर्षीय योजना का निर्माण करना और इसके निमित्त
केन्द्रीय सरकार के लिए सलाहकारी निकाय के रूप में कार्य करना.
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योजना आयोग भौतिक और मानव संसाधन के संतुलित उपयोग हेतु उचित अध्ययन कर चरणबध्द तरीके से योजना का मूल्यांकन
कर निर्देश जारी करता है.
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इसका पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है और राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते है.
<> राष्ट्रीय विकास परिषद्
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इस संविधानेत्तर निकाय का गठन 1952 में योजना आयोग के एक अनुषंगी संघ के रूप में किया गया जिससे राज्यों को
योजनाओं के निर्माण में सहभागी बनाया जा सके.
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प्रधानमंत्री इसका पदेन अध्यक्ष और राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते है.
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योजना आयोग को प्रभावकारी और गतिशील बनाकर इसकी प्रगति समीक्षा के माध्यम से अंतिम अनुमोदन करना इसका मुख्य
कार्य है.
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महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समरूप आर्थिक नीतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना.
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योजना आयोग की सिफारिशों का अंतिम अनुमोदन करता है.
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